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Geography of rajasthan notes in hindi - 5

राजस्थान का भूगोल भाग—5

पूर्वी मैदानी प्रदेश और दक्षिणी पूर्वी पठार


➤ पूर्वी मैदान प्रदेश राजस्थान के 23.9 प्रतिशत क्षेत्र को घेर हुए हैं। 
➤ इसमें बनास बेसिन और मध्य माही जिसे छपन का मैदान कहा जाता है को शामिल किया जाता है।
➤ छपन का मैदान माही नदी का बेसिन क्षेत्र है।
➤ पूर्वी मैदानी प्रदेश के उत्तरी भाग में भरतपुर, अलवर, सवाई माधोपुर, करौली, जयपुर, टोंक और भीलवाड़ा जिलों के मैदानी भाग आते हैं।
➤ पूर्वी मैदानी प्रदेश के दक्षिणी भाग में डूंगरपुर, बांसवाड़ा और चित्तौड़गढ़  के छप्पन गांवों के मैदानी भाग आते हैं इसलिए इसके दक्षिणी भाग को छपन का मैदान कहा जाता है।
➤ नदियों द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी से बने होने के कारण यह क्षेत्र ऊपजाउ कांप मिट्टी से बना हुआ है।
➤ अरावली पवर्तमाला और हड़ौती का पठार पूर्वी मैदानी प्रदेश को दो भागो में विभाजित कर देता है।
➤ पहला भाग बनास-बाणगंगा बेसीन कहलाता है, जो बनास व उसकी सहायक नदियों से बना है।

➤ बनास व उसकी सहायक नदियों का यह मैदान दक्षिण मे मेवाड़ का मैदान तथा उत्तर में मालपुरा-करौली के मैदान के नाम से जाना जाता है।
➤ बेड़च,  खारी, मांसी, मोरेल व बाणगंगा इसकी प्रमुख सहायक नदियां है।
➤ इस मैदान का ढाल पूर्व व उत्तर-पूर्व की ओर है। यहां एकल पहाड़ियां ऊंचाई पर टेकरीनुमा हो जाती हैं। 
➤ इस मैदान की औसत ऊंचाई 280 मीटर से 500 मीटर के बीच हैं।
➤ पूर्वी मैदानी भाग का दूसरा भाग मध्य माही-छप्पन बेसिन कहलाता है।
➤ यह मैदान उदयपुर के दक्षिणी-पूर्वी भाग, डूंगरपुर, बांसवाड़ा एवं चित्तौड़गढ़ के दक्षिणी भाग में 7056 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
इस मैदान की औसत ऊंचाई 200 से 400 मीटर है।
➤ सलूम्बर-सराड़ा क्षेत्र को स्थानीय भाषा में छप्पन तथा डूंगरपुर-बांसवाड़ा क्षेत्र को बागड़ क्षेत्र कहते हैं। 
➤ नदियों की अधिकता के कारण बांसवाड़ा को सौ टापुओं का क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
➤ माही की मुख्य सहायक नदियां सोम, जाखम, कागदर, झामरी आदि है। इस क्षेत्र में आदिवासी भील व गरसिया वालरा नामक स्थानान्तरित कृषि करते हैं।
➤ राजस्थान का चैथा प्रमुख भौगोलिक हिस्सा दक्षिण-पूर्वी पठार है।
➤ राजस्थान का दक्षिण-पूर्वी पठार हाड़ौती के नाम से विख्यात है।
➤ यह राजस्थान के 9 प्रतिशत भू-भाग को घेरे हुए है। यहां राज्य की 13 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
➤ इसमें कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ एवं चित्तौड़गढ़ जिले का पूर्वी भाग शामिल है।

➤ यहां लावा मिश्रित व विन्ध्यन शैलों का सम्मिश्रण है। इस पठारी भाग की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 500 मीटर है।
➤ इस क्षेत्र में काली व लाल मिट्टी पाई जाती है। चम्बल पार्वती एवं काली सिंध इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां है। 
➤ इस पठार को भी भौतिक दृष्टि से दो उप-प्रदेशों में विभाजित किया गया है।
➤ पहला हिस्सा विन्धययन कगार कहलाता है। यह कगार मुख्य रूप से बलुआ और चूना पत्थरों से बना है।
➤ इसकी औसत ऊंचाई 350 से 550 मीटर के बीच है। कगारों का मुख बनास व चम्बल नदी के बीच क्रमबद्ध दक्षिण-पूर्व और पूर्व दिशा की ओर है। 



➤ उत्तर में चम्बल के सहारे-सहारे ये सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर क्षेत्र में फैले हुए हैं।
➤ दूसरा भाग दक्कन लावा पठार कहलाता है। यह दक्षिणी पूर्वी राजस्थान का चैड़ा व ऊपर उठा पथरीला भू-भाग है।
➤ यह बलुआ पत्थर व चूना पत्थर चट्टानों से निर्मित है। इसका पूर्वी व दक्षिणी भाग लावा से ढका है।
➤ यहां उपजाऊ काली मिट्टी पाई जाती है। चम्बल व उसकी सहायक काली सिन्ध व पार्वती नदियों ने कोटा में एक त्रिकोणीय जलोढ़ मैदान की रचना की है।

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